लगे मांगने वोट भिखारी। वोट हमें दो, वोट हमें दो- विजय श्रेय सिर अपने तुम लो। भोली जनता कुछ घबराई-दल, दल की दलबन्दी आई।। दिखला कर निज ‘मेनीफेस्टो‘- कहते इसको कर दो ‘डिट्टो‘ रामू धोबी, कलुआ भंगी- इनके हैं सब सारे संगी।। चाचा, ताऊ, अम्मा, भाई-बहन, बना कर आश लगाई। दुखिया भूखें वोटो के ये सुखिया सूखे वोटों से ये।। द्वार द्वार पर हाथ पसारें-इसे पुकारें-उसे पुकारें कहते ये हम हैं जन सेवक- पर है सचमुच धन के सेवक।। जगा ग्रहण का सा कोलाहल--बरसायें यों चांद हलाहल। बलिदानी इतिहास हमारा- बहुत पुरातन जन हितकारी।। लगे मांगने वोट भिखारी।।1।। इक दूजे पर दोष लगाते-इक दूजे पर रोष दिखाते। हमने देश विकास किया है- उसने देश विनाश किया है।। टुकड़े भारत मां के करके- इनके पेट भरे ना भर के। बन्धु बने थे इनके लगे हड़पने कुछ भारत भूमी।। भ्रष्टाचारी सत्ता धारी- जनता अर्थ भूख की मारी। उलझा देश धर्म की नीति- हर की जन से जन की प्रीति।। ‘‘सुखं दिशा के अॅंध पुजारी‘‘-बनते निर्धन के हितकारी। ‘‘शोस्लिज्म के प्राण सहारे‘‘- जैसे बुझे हुये अॅंगारे।। ‘प्रण ये साम्प्रदायिकता के‘, --दावे करते मानवता के। ‘ब्लेक मेल‘ ह...