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ईश इन्हें सद्बुद्वि दो(कविता)


 लगे मांगने वोट भिखारी।

वोट हमें दो, वोट हमें दो- विजय श्रेय सिर अपने तुम लो।
भोली जनता कुछ घबराई-दल, दल की दलबन्दी आई।।
दिखला कर निज ‘मेनीफेस्टो‘- कहते इसको कर दो ‘डिट्टो‘
रामू धोबी, कलुआ भंगी- इनके हैं सब सारे संगी।।
चाचा, ताऊ, अम्मा, भाई-बहन, बना कर आश लगाई।
दुखिया भूखें वोटो के ये सुखिया सूखे वोटों से ये।।
द्वार द्वार पर हाथ पसारें-इसे पुकारें-उसे पुकारें
कहते ये हम हैं जन सेवक- पर है सचमुच धन के सेवक।।
जगा ग्रहण का सा कोलाहल--बरसायें यों चांद हलाहल।
बलिदानी इतिहास हमारा- बहुत पुरातन जन हितकारी।।
लगे मांगने वोट भिखारी।।1।।
इक दूजे पर दोष लगाते-इक दूजे पर रोष दिखाते।
हमने देश विकास किया है- उसने देश विनाश किया है।।
टुकड़े भारत मां के करके- इनके पेट भरे ना भर के।
बन्धु बने थे इनके लगे हड़पने कुछ भारत भूमी।।
भ्रष्टाचारी सत्ता धारी- जनता अर्थ भूख की मारी।
उलझा देश धर्म की नीति- हर की जन से जन की प्रीति।।
‘‘सुखं दिशा के अॅंध पुजारी‘‘-बनते निर्धन के हितकारी।
‘‘शोस्लिज्म के प्राण सहारे‘‘- जैसे बुझे हुये अॅंगारे।।
‘प्रण ये साम्प्रदायिकता के‘, --दावे करते मानवता के।
‘ब्लेक मेल‘ है इनका ‘ईमां‘-पंथ-धर्म के ये व्यापारी।।
लगे मांगने वोट भिखारी।।2।।
कुछ काली करतूतों वाले-आये बन फिर भोले भाले।
कुछ ‘थैली के बैंगन‘ आये- लिये सहारा ‘वेगुन‘ आये।।
पुनः एक अवकाश हमें दो-अपना प्रिय विश्वास हमें दो।
सब्ज-बाग दिखलने आये-वोटर को फुसलाने आये।।
वोटों पर यह धन्धा चलता नोटों की चोटों से फलता।
अब है दर्शन सस्ता जिनका ≤ दास होगा फिर इनका।।
कर लो अब ही प्यारी प्यारी-पंच वर्ष की बातें सारी।
लेलो जो कुछ लेना है अब- दे देा जो कुछ देना है अब।।
फिर न मिलेगें राम दुहाई- फिर न सुनेगे राम दुहाई।
लगे पर्व यह पांच वर्ष में- किस्मत मत-दाता ने हारी।।
लगे मांगने वोट भिखारी।।3।।
प्रत्याशी को मतदाता को-ईश इन्हें सद्बुद्धि दो।
योग्य, योग्यता को चुन पाये- भारत अपना भाग्य बनाये।।
शक्ति पुंज भारत हो मेरा- रहे सुखों का यहां सवेरा।
उगले सोना खेत हमारे- मृदे बन जायें ‘आंसू‘ खारे।।
श्रम पसीना मोती बन कर-बिखरे जीवन के कण कण पर।
भूखा नग्न न कोई सोये- पीडा ग्रस्त न कोई रौयैं
मातृ भाव का राग सुनाये- नाचे कला सुजीवन पाये।
हरे,प्रकृति मालिक हर बाधा- पालें, नद नदियां मर्यादा।।
पर्वत, रक्षक बने हमारा- दरिद्र धो दे सागर-खारा।
प्रत्याशी हो प्रतिनिधि अपना-कह न सके हम उसे भिखारी।।
जन मत ज्योति जगे उजियारी।।4।।

बरेली समाचार, बरेली दिनांक 15-2-1961, पृष्ठ -5