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एक मुक्तक(कविता)


जग सारा तो यहां विवेकी किसके साथी होलें-

अपनी अपनी सोचे सब ही अपनी अपनी बोलें।

बुद्वि प्यार की नहीं कसौटी, हृदय पारखी इसका-

सपनों के पलड़ों में जिसको दृग के मोती तोलें।।


सहयोगी, कानपुर, 19 दिसम्बर 1960, पृष्ठ - 5