एक मुक्तक(कविता) दिसंबर 31, 2020 जग सारा तो यहां विवेकी किसके साथी होलें-अपनी अपनी सोचे सब ही अपनी अपनी बोलें।बुद्वि प्यार की नहीं कसौटी, हृदय पारखी इसका-सपनों के पलड़ों में जिसको दृग के मोती तोलें।।सहयोगी, कानपुर, 19 दिसम्बर 1960, पृष्ठ - 5