हंस कर कीमत बनाया तुमको--नैनन नीर जरे-- अब नैनन नीर जरे।
जाने किसकी बातों में आ कैसी आग लगाई,
बावन के ढाई पग जैसे निकले अक्षर ढाई,
प्रीत बुरी रे, प्रीत बुरी यह ब्रज का कण-कण कहता--
बंशी की सुधियों को लेकर--यमुना तीर जरे-
अब यमुना तीर जरे।।1।।
रेखा चित्र बना कर कोई उसको रंगता रहता,
मौन बना कर मुझको भी खुद, सूने न कुछ भी कहता,
अब तो घावों के सुमनों की खुशबू है सुख देती-
पहले पीड़ा दुख देती थी-दुख को जीर जरे-
अब दुख को पीर जरे।।2।।
इस पंथ में राहें ही राहें मंजिल भी यह कहती,
बीत उम्र सब जाती चलते, दो अंगुल दूरी रहती,
मैं तन, मन तुम मिले न मिल कर राधा मोहन जैसे-
इसी लिये तो बाट देखती--तिल-तिल धीर जरे--
अब तिल-तिल धीर जरे।।3।।
काव्य पुष्प, पूर्वोतर रेलवे की मंडल हिन्दी समिति, इज्जतनगर की ओर से प्रकाशित।