केन्द्रित हो होकर हिरण्य जब, करता साधन सीमित- त्राहि त्राहि तब मचती भूपर, भय से जन अनुकम्पित। दैत्य-वृत्ति से होम रचा कर, भस्म होलिका करती-- किन्तु राम का प्यारा फिर भी, है प्रह्लाद सुरक्षित।।1।। आये फिर नर-सिंह एक ही, मुक्त सभी को करने-- रंजन जन को शुभ जीवन देने, जीवन में रंग भरने। पर प्रह्लाद तपस्वी उसका, कर सकता आह्वाहन- भीरू, भंगोड़े, कुटिल, स्वार्थरत, जनमे केवल मरने।।2।। ‘आचार्य - हिन्दी साप्ताहिक 22 मार्च 1962, वर्ष 10, अंक 51, पृष्ठ-1